अरस्तु का अनुकरण सिद्धांत
अरस्तु (Aristotle) प्राचीन ग्रीक दर्शन के एक प्रमुख विचारक थे, यूनानी भाषा में अरस्तु का वास्तविक नाम, अरिस्तोतेलेस है. उनकी प्रतिभा बहुमुखी थी. वे अनेक विधाओं के आचार्य थे. इन्होंने दर्शन, राजनीति, काव्य, नाटक, विज्ञान, और तर्कशास्त्र जैसे कई क्षेत्रों में अद्वितीय योगदान दिया। उनके साहित्यिक और काव्यशास्त्रीय विचारों में “अनुकरण सिद्धांत” (Theory of Imitation) विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। यह सिद्धांत उनकी प्रसिद्ध कृति “पोएटिक्स” (Poetics) में प्रतिपादित किया गया है।
अनुकरण का अर्थ
अनुकरण का सामान्य अर्थ है किसी वस्तु, घटना, या अनुभव की नकल करना या पुनर्निर्माण करना। अरस्तु के अनुसार, कला और साहित्य का मूल स्वभाव अनुकरण है। वह मानते हैं कि मानव स्वभाव में ही अनुकरण की प्रवृत्ति निहित होती है। बचपन से ही मनुष्य अपने आसपास के संसार को देखकर उसे समझने और व्यक्त करने का प्रयास करता है। यही प्रवृत्ति साहित्य, नाटक और चित्रकला जैसी कलाओं का आधार बनती है।
प्लेटो और अरस्तु के ‘अनुकरण सिद्धांत‘ सम्बन्धी विचारों में मतभेद है. ‘अनुकरण‘ शब्द यूनानी भाषा के ‘मिमेसिस’ के पर्याय के रूप में प्रस्तुत हुआ है. अरस्तु ने अपनी पुस्तक ‘पेरिपोइतिकेस‘ के आरम्भ में ही स्पष्ट कर दिया कि अन्य कलाओं की भांति काव्य भी अनुकरणधर्मी कला है: “चित्रकार अर्थात किसी भी अन्य कलाकार की ही तरह कवि अनुकर्ता है.” काव्य रचना के विभिन्न रूप-त्रासदी, महाकाव्य, कामदी आदि भी अनुकरण के ही प्रकार है.
अरस्तु कला को प्रकृति की ही अनुकृति मानते है. प्रकृति से अरस्तु का अभिप्राय प्रकृति या जगत के बाह्य, स्थूल, गोचर रूप के साथ-साथ आंतरिक रूप से भी था. चित्रकार अथवा किसी भी अन्य कलाकार की तरह कवि को अनुकर्ता स्वीकार करते हुए, उन्होंने ‘अनुकर्ता’ की प्रकृति की व्याख्या की. उनके अनुसार अनुकार्य अनिवार्यतः इन तीन प्रकार की वस्तुओं में से कोई एक हो सकती है- जैसी वे थी या है, जैसी वे कही या समझी जाती है अथवा जैसी वे होनी चाहिए. अरस्तु के अनुसार कवि को स्वतंत्रता है की वह प्रकृति को उस रूप में चित्रित करे जैसी वह उसकी इन्द्रियों को प्रतीत होती है अथवा जैसी वह भविष्य में प्रतीत हो सकती है या जैसी वह होनी चाहिए.
अरस्तु ने कवि और इतिहासकार में अंतर बताते हुए स्पष्ट किया है कि ”कवि और इतिहासकार में वास्तविक भेद यह है कि एक तो उसका वर्णन करता है जो घटित हो चूका है और दूसरा उसका वर्णन करता है जो घटित हो सकता है. परिणामतः काव्य में दार्शनिकता अधिक होती है. उसका स्वरूप इतिहास से भव्यतर होता है, क्योकि काव्य सामान्य(सार्वभौम) की अभिव्यक्ति है और इतिहास विशेष की.”
अनुकरण का उद्देश्य
अरस्तु के अनुकरण सिद्धांत में, कला का उद्देश्य मात्र वस्तुओं और घटनाओं की प्रतिलिपि बनाना नहीं है, बल्कि उनके सार को समझना और प्रकट करना है। वे मानते हैं कि कला वस्तुतः वास्तविकता का एक सृजनात्मक और व्याख्यात्मक प्रतिबिंब है।
- प्राकृतिक घटनाओं का अनुकरण: कला और साहित्य प्रकृति और मानव जीवन की घटनाओं का अनुकरण करते हैं।
- संवेदनाओं का अभिव्यक्ति: यह केवल बाह्य घटनाओं का नहीं, बल्कि मानवीय भावनाओं और संवेदनाओं का भी अनुकरण करती है।
- सामाजिक संदर्भ: अरस्तु के अनुसार, कला समाज की गतिविधियों और मानवीय क्रियाओं को प्रतिबिंबित करती है।
अनुकरण के तीन रूप
अरस्तु ने अनुकरण को तीन रूपों में विभाजित किया है:
- वस्तु का अनुकरण: कला और साहित्य में जिन पात्रों और घटनाओं को दिखाया जाता है, वे वस्तुओं या घटनाओं का अनुकरण करते हैं।
- माध्यम का अनुकरण: विभिन्न कलाएं जैसे कि संगीत, नाटक, चित्रकला आदि, अपने-अपने माध्यमों से वास्तविकता को व्यक्त करती हैं।
- शैली का अनुकरण: अनुकरण की शैली प्रत्येक कला में भिन्न होती है। जैसे, नाटक में संवाद और अभिनय के माध्यम से अनुकरण किया जाता है, जबकि काव्य में शब्दों और प्रतीकों के माध्यम से।
त्रासदी और अनुकरण
अरस्तु के अनुकरण सिद्धांत का विशेष रूप से त्रासदी (Tragedy) के संदर्भ में महत्वपूर्ण स्थान है। उनका कहना है कि त्रासदी एक गंभीर और संपूर्ण क्रिया का अनुकरण है, जो भाषा, लय और संगीत के माध्यम से व्यक्त की जाती है। त्रासदी का उद्देश्य दर्शकों के हृदय में करुणा और भय की भावनाओं को जागृत करना है, जिससे उनके भीतर “कैथार्सिस” (शुद्धिकरण) की स्थिति उत्पन्न होती है।
अनुकरण और सृजन
अरस्तु के अनुसार, अनुकरण केवल नकल नहीं है, बल्कि यह सृजनात्मक प्रक्रिया है। कलाकार अपनी कल्पना और सृजनात्मकता के माध्यम से वास्तविकता को नए रूप में प्रस्तुत करता है। यही कारण है कि एक ही घटना पर आधारित विभिन्न कलाकारों की रचनाएं एक-दूसरे से भिन्न होती हैं।
अरस्तु का अनुकरण सिद्धांत और आधुनिक साहित्य
अरस्तु का अनुकरण सिद्धांत आज भी साहित्य और कला के अध्ययन में प्रासंगिक है। यह सिद्धांत यह समझने में मदद करता है कि कला और साहित्य किस प्रकार मानव जीवन और समाज का प्रतिबिंब होते हैं। आधुनिक समय में भी, साहित्य और कला का उद्देश्य मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं को उजागर करना और सामाजिक, राजनीतिक, एवं नैतिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना है।
अनुकरण की सीमाएँ
अरस्तु के व्याख्याकार
1. प्रो. बुचर का मत है- अरस्तु के अनुकरण का अर्थ है-”सदृश्य विधान अथवा मूल का पुनरुत्पादन, सांकेतिक उल्लेखन नहीं. कोई भी कलाकृति मूल वस्तु का पुनरुत्पादन, जैसी वह होती है वैसी नहीं अपितु जैसी वह इन्द्रियों को प्रतीत होती है, वैसा करती है. कलाकृति इन्द्रिय-सापेक्ष पुनः सृजन है, यथातथ्य अनुकरण नहीं. कला का संवेदन तत्व ग्राहिणी बुद्धि के प्रति नहीं अपितु भावुकता और मन की मूर्ति विधायिनी शक्ति के प्रति होती है.
2. प्रो. गिल्बर्ट मरे ने यूनानी शब्द ‘पोयतेस’ को आधार बनाकर अनुकरण की व्युत्पत्तिमूलक व्याख्या प्रस्तुत की है. उनके अनुसार कवि शब्द के पर्याय में ही अनुकरण की धारणा निहित है, किन्तु अनुकरण का अर्थ सर्जना का आभाव नहीं है.
3. स्कॉट जेम्स का मत- इन्होंने अनुकरण को जीवन के कल्पनात्मक पुनर्निर्माण का पर्याय माना है. इनकी दृष्टि में- ‘अरस्तु के काव्यशास्त्र में अनुकरण से अभिप्राय है साहित्य में जीवन का वस्तुपरक अंकन, ‘जिसे हम अपनी भाषा में जीवन का कल्पनात्मक पुनर्निर्माण कह सकते है.’
निष्कर्ष
अरस्तु का अनुकरण सिद्धांत कला और साहित्य के मूलभूत सिद्धांतों में से एक है। यह सिद्धांत न केवल कला की प्रकृति को समझने में सहायक है, बल्कि यह मानव जीवन और समाज के बीच कला के गहरे संबंध को भी स्पष्ट करता है। अरस्तु का विचार है कि कला वास्तविकता का सृजनात्मक अनुकरण है, जो दर्शकों और पाठकों को सोचने, महसूस करने और समझने की प्रेरणा देती है।
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